कविता संग्रह >> टोट बटोट टोट बटोटसूफ़ी तबस्सुम
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टोट बटोट
सूफ़ी तबस्सुम या पूरा नाम लिखें तो गुलाम मुस्तफा तबस्सुम को कौन नहीं जानता। फारसी के माने हुए आलिम (विद्वान), उम्दा शायर और शायरों के उस्ताद (कहा जाता है कि जब तक मुमकिन हो सका फैज़ साहब अपना ताज़ा कलाम शाया होने के पहले सूफ़ी साहब को ज़रूर दिखा लेते थे) और फिर बच्चों के शायर, टोट-बटोट की नज़्मों का सिलसिला लिखकर सूफी साहब ने बच्चों ही नहीं बूढ़ों के दिलों में भी घर बना लिया था। सूफ़ी तबस्सुम की नज़्में सिर्फ बच्चों की नज़्मे हैं, उनमें उस्तादाना या मुरब्बियाना (उपदेशात्मक) रवैया नहीं इख़्तियार किया गया है बल्कि बच्चों की इन्फरादी हैसियत (व्यक्तिगत स्वतन्त्रता) को बरकरार रखा गया है। उनमें अख्लाकी दर्स (नैतिकता की शिक्षा) तो क्या इस बात पर भी कुछ ज़ोर नहीं कि ये नज़्में बामानी हों।
ये नज़्में हैं, दिल को बहलाने के लिए, ज़ुबान का लुत्फ लेने के लिए, बच्चों को खुश करने के लिए।
- शम्सुर्रहमान फारूकी
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